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पूर्णिमा एक विशेष तिथि होती है, इस दिन हम स्वयं को कर सकते हैं दैदीप्यमान।

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पूर्णिमा एक विशेष तिथि होती है, इस दिन हम स्वयं को कर सकते हैं दैदीप्यमान।

पूर्णिमा एक विशेष तिथि होती है, इस दिन हम स्वयं को कर सकते हैं दैदीप्यमान।
पृथ्वी पर जो शक्ति देखने में आती है , वह पृथ्वी की न होकर कृष्ण की है । कृष्ण ही प्राणियों को धारण करते हैं । कृष्ण ही चन्द्रमा के रूप से वनस्पतियों में जीवन – रस बनकर समस्त प्राणीयों का पोषण करते हैं ( भागवत गीता ) । वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि जल का भाग पृथ्वी की अपेक्षा बहुत अधिक है। इसके बाद भी पृथ्वी जलमग्न नहीं होती , यह कृष्ण की धारण – शक्ति का ही प्रभाव है । वर्ष व माह का निर्धारण सूर्य की गति और चंद्रमा की कला के आधार पर किया गया है ।
वर्ष की गणना सूर्य के आधार पर व माह की गणना चंद्रमा के आधार पर होती है । 1 वर्ष में सूर्य पर आधारित 2 अयन होते हैं उत्तरायण और दक्षिणायन । इसी तरह चंद्रमा पर आधारित 1 माह के 2 पक्ष होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष शुक्ल पक्ष के 15 वें दिन को पूर्णिमा कहा जाता है। मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी ऊर्जा से परिपूर्ण होते हैं और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी चूंकि चंद्रमा का संबंध धरती के जल से है , चंद्रमा समुद्र के जल को ऊपर की ओर खींचता है इसीलिए जब पूर्णिमा आती है तो समुद्र में ज्वार – भाटा उत्पन्न होता है तथ्यों के अनुसार मानव के शरीर में भी लगभग 75 प्रतिशत जल रहता है अतएव पूर्णिमा का प्रभाव मानव शरीर पे भी पड़ता है । वैज्ञानिकों के अनुसार पूर्णिमा की रात चंद्रमा का प्रभाव तेज होने के कारण शरीर के अंदर रक्त में न्यूरॉन सेल्स क्रियाशील हो जाते हैं जिससे दिमाग का नियंत्रण शरीर की अपेक्षा भावनाओं पर ज्यादा केंद्रित हो जाता है और मनुष्य भी मानसिक व भावनात्मक रूप से अधिक क्रियाशील हो जाता है । आइये जानें कि पूर्णिमा की विशेषताओं व श्रेष्ठताओं का प्रभाव हमें कैसे मिले –

सही मानसिकता स्थापित करने और खुद को संरेखित करने के लिए पूर्णिमा पर ध्यान कर सकते हैं ।

चंद्रमा के दूधिया प्रकाश से स्नान कर अपने आभामंडल की सफाई कर सकते हैं ।

पूर्णिमा एक शक्तिशाली समय है जब आप अपने जीवन से वो सब छोड़ने का अनुष्ठान कर सकते हैं जिससे आपको तनाव हो व वो सब पाने के लिए भी अनुष्ठान कर सकते हैं जिससे आप आनंदित हों ।

चंद्रमा की ऊर्जा का उपयोग करके स्वयं को भी प्रकाशित करें।
चंद्रमा को वेद – पुराणों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा मनसो जातः । यानी कि हमारे मन का सीधा संबंध चंद्रमा से है , तो क्यों न पूर्णिमा हम अपने मन को जानने की कोशिश करें , समझने की कोशिश करें कि वो क्या मान्यताएं या विचार हैं जो हमारी प्रगति , संपन्नता ओर खुशहाली को रोक रही है ? क्या बाधाएं हमारे रास्ता रोके हुए हैं ? यदि हम चंद्रमा के प्रकाश में स्नान करते हैं और खुद के सारे सवालों पे विचार कर उन्हें समर्पित करते हैं तो निश्चित ही अपने अंदर छुपी आत्म बाधा से मुक्त होने के लिए खुद निर्देशित होते हैं ।

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